सम्पूर्ण क्रांति
जयप्रकाश नारायण
1.
आन्दोलन के नेतृत्व के सम्बन्ध में जयप्रकाश नारायण के क्या विचार थे ?
आन्दोलन का नेतृत्व वे किस शर्त पर स्वीकार करते हैं ?
उत्तर -
आन्दोलन के नेतृत्व के विषय में जे . पी . के विचार थे कि सबकी सलाह ली जायेगी ,
सबकी बात सुन ली जायेगी । छात्रों की बात तो अधिकाधिक सुनी जायेगी , जितना भी समय
होगा उनके साथ बिताया जायेगा । उनसे बहस भी की जायेगी । उनकी बातें समझी जायेंगी
और अधिक से अधिक समझने का प्रयास भी किया जायेगा । जन संघर्ष समिति की बात भी सुनी
जायेगी , समझी जायेगी पर फैसला मेरा ही होगा । सबको इस फैसले को मानना होगा । आपको
भी मानना होगा । यहाँ एक बात साफ है कि जयप्रकाश नारायण ने साफ कहा था कि आन्दोलन
का संचालन सबकी सलाह से होगा जहाँ कि बहस भी होगी , पर अन्तिम फैसला उन्हीं का
होगा । यदि यह नहीं हो सका तो पता नहीं हम किधर बिखर जायेंगे ।
2.
बापू और नेहरू की किस विशेषता का उल्लेख जेपी ने अपने भाषण में किया है ?
उत्तर -
जयप्रकाश जी स्पष्ट कहते हैं , जो काम गलत होंगे . उनकी नीतियाँ गलत होंगी , वे
उसका विरोध करेंगे । बापू में इतनी महानता थी कि वे बुरा नहीं मानते थे । वे हमें
बुलाकर प्रेम से समझाना चाहते थे , समझाया भी है। जवाहर लाल बड़े भाई थे वे उनको
भाई ही कहते थे । उनका बड़ा स्नेह उनके ऊपर था । वे जयप्रकाश जी को मानते भी काफी
थे , जयप्रकाश जी भी उनका बड़ा आदर करते थे । उन्होंने भी जयप्रकाश जी की आलोचनाओं
का बुरा नहीं माना ।
3.
चुनाव सुधार के बारे में जयप्रकाश जी के प्रमुख सुझाव क्या हैं ? उन सुझावों
से आप कितना सहमत हैं ?
उत्तर -
जयप्रकाश जी मानते हैं कि आज के मतदाता को केवल इतना अधिकार ही प्राप्त है कि वह
चुनाव में अपना मतदान कर पाता है पर मतदान प्रक्रिया न तो स्वच्छ और न स्वतन्त्र
होती है , न उम्मीदवारी के चयन में मतदाताओं का हाथ रहता है । अपने चुनाव के बाद
अपने प्रतिनिधि पर उनका कोई अंकुश नहीं रहता है । जयप्रकाश जी इसमें परिवर्तन
चाहते हैं । साथ ही चुनाव में जो रुपया , जाति , बाहुबल का प्रयोग होता है , जो
मिथ्या भाषण और मिथ्याचरण होता है यह भी समाप्त होना चाहिए ।
4.
दिनकर जी का निधन कहाँ और किन परिस्थितियों में हुआ था ?
उत्तर -
दिनकर जी रामनाथगोयनका के यहाँ मेहमान थे जो इण्डियनएक्सप्रेस के मालिक थे । रात
को दिल का दौरा पड़ा , तीन मिनट में उनको अस्पताल पहुंचाया , गोयनका जी ने उन्हें
विलिगडननर्सिंग होम में भर्ती कराया । सारा इन्तजाम था वहाँ पर । सभी डॉक्टर सब
तरह के औजार लेकर तैयार थे । लेकिन दिनकर जी का हार्ट फिर से जिन्दा नहीं हो पाया
, वहीं उनका निधन हो गया ।
5.
जयप्रकाश नारायण कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों नहीं शामिल हुए ?
उत्तर - जयप्रकाश
ने लौटने पर सोचा था कि जो देश गुलाम हैं वहाँ के कम्युनिस्टों को हरगिज वहाँ की
आजादी की लड़ाई से अपने को अलग नहीं रखना चाहिए । क्योंकि लड़ाई के नेतृत्व '
बुर्जुआ क्लास ' के हाथ में रहता है , पूँजीपतियों के हाथ में होता है । अत :
कम्युनिस्टों को अलग नहीं रहना चाहिए । जे . पी . स्वतन्त्रता के दीवाने थे , वे
आजादी चाहते थे , उनकी उस समय आजादी के लिये संघर्ष काँग्रेस ही कर रही थी अत :
उन्होंने उसके साथ स्वतन्त्रता संग्राम लड़ना प्रारम्भ कर दिया ।
6.
जयप्रकाश नारायण के छात्र जीवन और अमेरिका प्रवास का परिचय दें । इस अवधि में
कौन - कौनसी बातें आपको प्रभावित करती हैं ?
उत्तर - वे
बताते हैं 1921 जनवरी के मास में पटना कॉलेज में आई . एस . सी . के छात्र थे ।
अन्य छात्र भी थे । सबने ही एक साथ गाँधी जी के आह्वान पर असहयोग किया , फिर डेढ़
वर्ष पढ़ाई ठप्प रही । वे साइंस के छात्र थे अतः उन्हें फूलदेव सहाय वर्मा के पास
भेजा गया , वहाँ प्रयोगशाला में कुछ प्रयोग करके उनसे कुछ सीखा जाय । जयप्रकाश जी
हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु तैयार नहीं थे क्योंकि विश्वविद्यालय को
सरकारी मदद मिलती थी । फिर उन्होंने बिहार विद्यापीठ में आई . एस . सी . में
परीक्षा दी और पास भी हो गये ।
अमेरिकी
प्रवास - पिता जी मात्र रेवेन्यूअसिस्टेन्ट थे उनकी ऐसी हैसियत नहीं थी कि जे . पी
. को अमेरिका भेजा जा सके , पर जे . पी . ने सुना था कि अमेरिका में मजदूरी करके
भी लड़के पढ़ सकते हैं अत : वह अमेरिका गये । पर यह बात अनेक व्यक्तियों को नहीं
भायी क्योंकि उत्कृष्ट राष्ट्रीय चेतना के यह विपरीत था । उन्हें अमेरिका का दलाल
बताया गया । वहाँ उन्होंने बागानों में काम किया । जिस समय वे यूनिवर्सिटी में पढ़
रहे थे , छुट्टियों में काम करके इतना कमा लेते थे कि बड़े मजे से खा - पीकर कुछ
बचा भी लेते थे , कुछ कपड़े हेतु कुछ फीस के लिये । बाकी हर दिन एक घण्टा
रेस्त्रां में , होटल में या तो बर्तन धोये और वेटर का काम किया । जब बी . ए . पास
किया स्कॉलरशिप मिलने लगी फिर तीन मास बाद डिपार्टमेण्ट के असिस्टेन्ट भी हो गये ।
ट्यूटोरियल की क्लास भी लेने लगे फिर जीवन थोडा आराम से कटने लगा ।
7.
पाठ के आधार पर प्रसंग स्पष्ट करें:
( क ) अगर कोई डेमोक्रेसी का दुश्मन है तो वे लोग दुश्मन
हैं , जो जनता के शान्तिमय कार्यक्रम में बाधा डालते हैं , उनकी गिरफ्तारियाँ करते
हैं उन पर लाठियाँ चलाते हैं , गोलियाँ चलाते हैं ।
( ख ) व्यक्ति से नहीं हमें तो नीतियों से झगड़ा है ,
सिद्धान्तों से झगड़ा है , कार्यों से झगड़ा है।
उत्तर -
प्रस्तुत पंक्तियाँ जयप्रकाश नारायण के भाषण , जो उन्होंने सन् 1974 को पटना के
गांधी मैदान में दिया था , से लिया गया हैं ।
( क ) उस
समय जो सरकार थी , उसकी नीतियों और क्रियाकलापों की आलोचना करते हुए जयप्रकाश जी
कहते हैं कि आज हम सभा भी नहीं कर सकते , सभा में आने वाली जनता को रोका जाता है
उन पर बल प्रयोग किया जाता है , ये ही वास्तव में डेमोक्रेसी के दुश्मन हैं ,
डेमोक्रेसी में सभा करने का अधिकार जनता को प्राप्त है । जो व्यक्ति शान्तिमय
कार्यक्रम में भी बाधा डालते हैं वे कार्यक्रम में आने वालों को बन्दी बनाते हैं ,
उन पर लाठियाँ बरसाते हैं । क्या अपराध है उनका , मात्र यही कि वे सभा में जाते ही
रहते हैं । अतः प्रजातन्त्र के वास्तविक शत्रु यही हैं ।
( ख )
जयप्रकाश जी ने अपने पटना के भाषण में यही कहा था , आज जो कुछ देश में हो रहा है ,
वह नीतिगत कम स्वार्थगत अधिक है । उसके कर्ता - धर्ता हमारे शासक हैं , श्रेष्ठ
व्यक्ति हैं उनके इशारे पर ही हो रहा है वे ही उसके लिए पूर्णत : उत्तरदायी हैं ।
पर मैं उन्हें कम दोषी मानता हूँ मैं तो उन नीतियों को ही दोषी मानता हूँ , जिनके
आधार पर सत्ता वाले यह सब कुछ कर रहे हैं अतः वास्तविक दोषी व्यक्ति नहीं मात्र
नीतियाँ हैं । कहा तो यही जाता है कि हमारी नीतियाँ जनता के लिये हैं पर
वास्तविकता यह है कि उनकी कोई नीतियाँ ही नहीं हैं अगर कुछ है भी तो वे स्वार्थहित
ही है ।
8.
भ्रष्टाचार की जड़ क्या है ? क्या आप जे.पी. से सहमत हैं ? इनके गुणगान हेतु
क्या सुझाव देंगे ?
उत्तर -
इसका मूल था सरकारी नीतियाँ ही उत्तरदायी हैं । इसके कारण ही भूख है , महँगाई है ,
रिश्वतखोरी है और यह भ्रष्टाचार पनपता जा रहा है । बिना रिश्वत के कोई काम चलता ही
नहीं । सरकारी दफ्तर , बैंक अर्थात् प्रत्येक स्थल पर यह पसरा हुआ है और विकराल
रूप से पसरा हुआ है , हर प्रकार के अन्याय के नीचे जनता दब रही है । शिक्षण
संस्थाएँ तक भ्रष्ट हो गयी हैं फिर बचा ही क्या है ? युवा वर्ग हमारा अन्धकार में
भटक रहा है व ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ भ्रष्टाचार न पसरा हो । फिर उसकी जड़ें
कहाँ खोजी जायें कहाँ तक नहीं हैं उसकी जड़ें ? गाँव में , सड़क पर , रेल मीटर में
, खेत - खलियान में , अस्पताल में और पुलिस विभाग में तो उसकी जड़ों का जाल बिछा
हुआ है ।
9.
दलविहीनलोकतन्त्र और साम्यवाद में किस प्रकार सम्बन्ध है ?
उत्तर -
दलविहीनलोकतन्त्र की कल्पना सर्वोदय का सिद्धान्त है । उसकी मान्यता है ग्राम
सभाओं के आधार पर दलविहीन प्रतिनिधित्व स्थापित हो सकता है । मार्क्सवाद भी दलविहीनलोकतन्त्र
का हिमायती है । यह लोकतन्त्रवाद का एक मूल उद्देश्य भी है । वे यह मानते हैं कि
समाज जैसे - जैसे साम्यवाद की ओर बढ़ता जाता है , उसी मात्रा में राज्य ( स्टेट )
का अस्तित्व धूमिल होता जाता है और अन्त में एक स्टेटलेस सोसाइटी स्थापित हो जाती
है । वह समाज निश्चित रूप से लोकतान्त्रिक होगा , साथ ही दलहीन भी होगा ।