अर्धनारीश्वर
रामधारी सिंह दिनकर
पाठ का सारांश
अर्धनारीश्वर के निबंधकार रामधारी सिंह दिनकर है। दिनकर जी कहते है कि अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती का कल्पित रूप है , जिसका आधा अंग पुरुष और आधा अंग नारी का होता है | निबंधकार कहते है कि नारी-पुरुष गुणों की दृष्टि से सामान है| एक का गुण दूसरे का दोष नहीं है। प्रत्येक नर के अंदर नारी का गुण होता है , परंतु पुरुष स्त्रैण कहे जाने की डर से दबाये रखता है|अगर नारों में वे विशेषताएँ आ जाये जैसे दया, ममता, औदार्य, सेवा आदि तो उनका व्यक्तित्व धूमिल नहीं बनता बल्कि और अधिक निखार जाता है। इसी तरह प्रत्येक स्त्री में पुरुष का तत्व होता है परंतु सिर्फ उसे कोमल शरीर वाली , पुरुष को आनंद देने वाली रचना , घर की दीवारों में रहने वाली मानसिकता उसे अलग बनाती है और इसलिए इसे दुर्बल कहे जाने लगा | समय बीतने के साथ ही पुरुषों ने महिलाओं के अधिकार को दबाता गया | पुरुष और स्त्री के बीच अधिकार और हक का बटवारा हो गया | महिलाओं को सिर्फ सुख का साधन समझा जाने लगा है | निबंधकार कहते है कि आदि मानव और आदि मानवी होते तो उन्हेअफसोश होता की मैंने तो नारी मे अंतर नही किया | हम साथ - साथ रहे | पशु और पक्षियों में भी नर नारी होते है लेकिन वे नारियों पर कोई भेदभाव नही किया |
दिनकर जी स्त्री के प्रति टैगोर , प्रसाद और
प्रेमचंद जैसे कवियों के विचार से असहमत थे , उनकी नारी के प्रति कोमलतावादी ,
रूमानी दृष्टि का विरोध करते थे | प्रेमचन्द्र ने कहा है की जब पुरुष नारी का रूप
लेता है तो देवता बन जाता है , और जब नारी पुरुष का रूप लेती है तो राक्षसी बन
जाती है | दिनकर जी कहते है की यह सुनने मे बहुत अच्छा लगता है की नारी स्वप्न है
, नारी सुगंध है , नारी पुरुष की बाह पर झूलती हुई माला है | पुरुष अब नारियों से
कहने लगा है की तुम्हें घर से निकलने की जरूरत नही है मै अकेला काफी हूँ | क्योंकि
नारी को क्रीडा का वस्तु मानता है , जिसमे धूल कण न लग जाए |
निबंधकार
कहते है कि प्रत्येक नर को एक हद तक नारी और नारी को एक हद तक नर बनाना भी आवश्यक
है | गांधीजी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में नारीत्व का भी साधना की थी | उनकी
पोती ने उन पर जो पुस्तक लिखी है , उसका नाम ही ' बापू , मेरी माँ है |