उसने कहा था
चंद्रधर शर्मा गुलेरी
पाठ का सारांश
कहानी का प्रारंभ अमृतसर नगर के चौक बाजार में एक 8 वर्षीय सिख बालिका तथा एक 12 वर्षीय सिख बालक के बीच छोटे से वार्तालाप से होता है । दोनों ही बालक - बालिका अपने - अपने मामा के यहां आए हुए हैं । बालिका व बालक दोनों सामान खरीदने बाजार आए थे कि बालक मुस्कुराकर के बालिका से पूछता है “ क्या तेरी कुडमाई ( सगाई ) हो गई ? " इस पर बालिका कुछ आँखे चढ़ाकर “ धत " कहकर दौड़ गई और लड़का मुंह देखता रह गया | यह दोनों बालक बालिका दूसरे तीसरे दिन एक दूसरे से कभी किसी दुकान पर कभी कहीं टकरा जाते और वही प्रश्न और वही उत्तर | एक दिन ऐसा हुआ कि बालक ने वही प्रश्न पूछा और बालिका ने उसका उत्तर लड़की की संभावना के विरुद्ध दिया और बोली “ हां हो गई । ” इस उत्तर को सुनकर लड़का चौक पड़ता है और पूछता है कब ? लड़की कहती है “ कल देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ साल ! ” और यह कह कर भाग जाती है | परंतु लड़के के ऊपर मनोव्रजपात होता है और वह किसी को नाली में धकेलता है , किसी छाबड़ी वाले की छाबड़ी गिरा देता है , किसी कुत्ते को पत्थर मारता है , किसी सब्जी वाले के ठेले में दूध उड़ेल देता है और किसी सामने आती हुई वैष्णवी से टक्कर मार देता है और गाली खाता है | कहानी का पहला भाग यही नाटकीय ढंग से समाप्त हो जाता है | इस बालक का नाम था लहना सिंह और बालिका बाद में सूबेदारनी के रूप में हमारे सामने आती है । इस घटना के 25 वर्ष बाद कहानी का दूसरा भाग शुरू होता है । लहना सिंह युवा हो गया और जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई में लड़ने वाले सैनिकों में भर्ती हो गया | और अब वह 77 राइफल्स में जमादार है | एक बार वह सात दिन की छुट्टी लेकर अपनी जमीन के किसी मुकदमे की पैरवी करने घर आया था । वहीं उसे अपने रेजिमेंट के अवसर की चिट्ठी मिलती है की फौज को युद्ध पर जाना है , फ़ौरन चले आओ | इसी के साथ सेना के सूबेदार हजारा सिंह को भी चिट्ठी मिलती है कि उसे और उसके बेटे बोधा सिंह दोनों को ( लाम ) युद्ध पर जाना है , अतः साथ ही चलेंगे | सूबेदार का गांव रास्ते में पड़ता है और वह लहना सिंह को चाहता भी बहुत था | लहना सिंह सूबेदार के घर पहुंच गया जब तीनों चलने लगे तब अकेले में सूबेदारनी उसे " कुड़माई हो गई " वाला वाक्य दोहरा कर कर 25 वर्ष पहले की घटना की याद दिलाती है और कहती है कि जिस तरह उस समय उसने एक बार घोड़े की लातों से उसकी रक्षा की थी उसी प्रकार उसके पति और एकमात्र पुत्र की भी रक्षा करें | वह उसके आगे अपना आँचल पसार का भिक्षा मांगती है | यह बात ललन सिंह के दिल छू जाती है | युद्ध भूमि पर उसने सूबेदारनी के बेटे को अपने प्राणों की चिंता न करके जान बचाई । पर इस कोशिश में वह खुद घातक रूप से घायल हो गया | उसने अपने घाव पर बिना किसी को बताए कसकर पट्टी बांध लिया और इसी अवस्था में जर्मन सैनिकों का मुकाबला करता रहा | शत्रुपक्ष की पराजय के बाद उसने सूबेदारनी के पति और उसके पुत्र को गाडी में सकुशल बैठा दिया और चलते हुए कहा “ सुनिए तो सूबेदारनी को चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उन्होंने कहा था वह मैं कर दिया | सूबेदार पूछता ही रह गया उसने क्या कहा था कि गाड़ी चल दी । बाद में उसने वजीरा से पानी मांगा और कमरबंद खोलने को कहा क्योंकि वह खून से टार था तथा मृत्यु निकट होने होने पर जीवन की सारी घटनाएं चलचित्र के समान घूम गई और अंतिम वाक्य जो उसके मुंह से निकला वह था “ उसने कहा था " इसके बाद अखबार में छपा कि “ फ्रांस और बेल्जियम 68 सूची मैदान में घावों से भरा नं . 77 सिख राइफल जमादार सिंह । इस प्रकार अपनी बचपन की छोटी सी मुलाकात में हुए परिचय उसके मन में सूबेदारनी के प्रति जो प्रेम उदित हुआ था उसके कारण उसने सूबेदारनी के द्वारा कहे गए वाक्यों को स्मरण रख उसके पति व पुत्र की रक्षा करने में अपनी जान दे दी क्योंकि उसने कहा था |
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ReplyDeleteVery nice sir
ReplyDeletethanks mate
ReplyDeletenice sir
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