कड़बक
मलिक मुहम्मद जायसी
जीवन परिचय
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मलिक मुहम्मद जायसी की जन्म तिथि और स्थान को लेकर आज भी
मतभेद है लेकिन कवि के इस पंक्ति से उसके जन्म के बारे में पता लगाया जा सकता है:
या अवतार मोर नव सदी|
तीस बरस उपर बदी||
इस पंक्ति के अनुसार
कहा जा सकता है कि मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म 900 हिज़री यानि 15वीं शती उत्तरार्ध, लगभग 1492 ई. में हुआ था|
जन्म स्थान
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मलिक मुहम्मद जायसी के जन्म स्थान के विषय में भी मतभेद है
कि जायस (कब्र अमेठी, उत्तर प्रदेश) ही उसका जन्म स्थान था या कहीं और से आकर जायस
में बस गए थे| लेकिन कवी के इस पंक्ति से पता चलता है कि वह जायस के निवासी थे|
जायस नगर मोर अस्थानू|
नागरक नांव आदि उदयानू|
तहां देवास दस पहुने आएऊँ|
भा वैराग बहुत सुख पाएऊँ||
इससे यह पता चलता है की उस नगर का प्राचीन नाम उदयान था और वहां वे एक
पाहुने के रूप में पहुंचे और वहीँ उसे वैराग्य हो गया और सुख मिला|
इस प्रकार स्पष्ट है जायसी का जन्म जायस में नहीं हुआ था बल्कि वह उनका धर्म स्थान
था और कहीं से आकर वहां रहने लगे|
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पं. सूर्यकांत शास्त्री ने लिखा है कि उनका जन्म जायस शहर
के कंचाना मुहल्ला में हुआ था|
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कई विद्वानों ने कहा है कि जायसी का जन्म गाजीपुर में हुआ
था|
जायसी
की मृत्यु
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मलिक मुहम्मद जायसी की मृत्यु को लेकर भी मतभेद है | इनका
निधन सम्भतः 1548 ई. में हुआ था|
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जायसी के पिता का नाम मलिक शेख ममरेज (मलिक राजे अशरफ) था
जो एक मामूली जमींदार थे और खेती करते थे|
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जायसी ने अपनी कुछ रचनाओ में अपने गुरु सूफी संत शेख मोहिदी
और सैयद अशरफ जहाँगीर का उल्लेख करते है| उनका कहना है, सैयद अशरफ जो एक प्रिय संत
थे मेरे लिए उज्जवल पथ के प्रदशर्क बने और उन्होंने प्रेम का दीपक जलाकर मेरा
ह्रदय निर्मल कर दिया|
जायसी की वृत्ति
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आरम्भ में जायस में रहते हुए किसानी, बाद में शेष जीवन
फकीरी में, बचपन में ही अनाथ, साधुओं-फिकिरों के साथ भटकते हुए बचपन बीता|
जायसी का व्यक्तित्व
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चेचक के कारण रूपहीन तथा बाई आँख और कान से वंचित|
मृदुभाषी, मनस्वी और स्वभातः संत|
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जायसी एक बार जब शेरशाह के दरबार में गए तो वह उन्हें देखकर
हंस पड़ा| तब जायसी ने शांत भाव से पूछा:
मोहिका हससि, कि कोहरहि?
यानि तू मुझ पर हंसा या उस कुम्हार (इश्वर) पर| तब शेरशाह ने लज्जित होकर मांफी
मांगी|
कृतियाँ
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पद्द्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, कहरानामा(महरी बाईसी), मसला
या मसलानामा, चंपावत, होलोनामा, इतरावत, आदि
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जायसी का महँ कथाकाव्य ‘पद्द्मावत’ है जिसमे चित्तौड़ नरेश
रतनसेन और सिंहल द्वीप की राजकुमारी पद्द्मावती की प्रेमकथा है|
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जायसी सूफी काव्यधारा अथवा प्रेममाग्री शाखा के कवि थे|
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जायसी को ‘प्रेम की पीर’
के कवि के नाम से जाना जाता है|
मलिक मुहम्मद जायसी
या अवतार मोर नव सदी|
तीस बरस उपर बदी||
इस पंक्ति के अनुसार कहा जा सकता है कि मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म 900 हिज़री यानि 15वीं शती उत्तरार्ध, लगभग 1492 ई. में हुआ था|
जायस नगर मोर अस्थानू|
नागरक नांव आदि उदयानू|
तहां देवास दस पहुने आएऊँ|
भा वैराग बहुत सुख पाएऊँ||
इससे यह पता चलता है की उस नगर का प्राचीन नाम उदयान था और वहां वे एक पाहुने के रूप में पहुंचे और वहीँ उसे वैराग्य हो गया और सुख मिला|
इस प्रकार स्पष्ट है जायसी का जन्म जायस में नहीं हुआ था बल्कि वह उनका धर्म स्थान था और कहीं से आकर वहां रहने लगे|
जायसी की मृत्यु
मोहिका हससि, कि कोहरहि?
यानि तू मुझ पर हंसा या उस कुम्हार (इश्वर) पर| तब शेरशाह ने लज्जित होकर मांफी मांगी|
कड़बक - 1 भावार्थ
कड़बक-2 भावार्थ
मुहमद यहि जोरि सुनावा | सुना जो प्रेम पीर गा पावा |
जोरी लाइ रकत कै लेई | गाढ़ी प्रीति नैन जल भेई |
यह पंक्ति मलिक
मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्द्मावत के अंश है जिसमे कवि कहते है कि मैंने इस कथा को
जोड़कर सुनाया है और जिसने भी इसे सुना उसे प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ| इस कविता
को मैंने रक्त की लाइन लगाकर जोड़ा है और गाढ़ी प्रीति को आंसुओं से भिगो-भिगोकर
गीली किया है|
औ मन जानि कबित अस कीन्हा | मकु यह रहै जगत
महँ चीन्हा|
कहाँ सो रतनसेनी अस राजा | कहाँ सुवा असि बुधि उपराजा |
कहाँ अलाउद्दीन सुलतानु | कहँ राघौ जेईं कीन्ह बखानू |
कहँ सुरूप पदुमावती रानी | कोइ न रहा जग रही कहानी |
यह पंक्ति मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्द्मावत के अंश है जिसमे कवि कहते है कि मैंने यह विचार करके निर्माण किया कि यह शायद मेरे मरने के बाद संसार में मेरी यादगार के रूप में रहे| वह राजा रत्नसेन अब कहां? कहां है वह सुआ जिसने राजा रत्नसेन के मन में ऐसी बुद्धि उत्पन्न की? कहां है सुल्तान अलाउद्दीन और कहां है वह राघव चेतन जिसने अलाउद्दीन के सामने पद्मावती का रूप वर्णन किया| कहां है वह लावण्यवती ललना रानी पद्मावती| कोई भी इस संसार में नहीं रहा केवल उनकी कहानियां बाकी बची है|
धनि
सो पुरुख जस कीरति जासू | फूल मरै पै मरै न बासू |
यह पंक्ति मलिक मुहम्मद
जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्द्मावत के अंश है जिसमे कवि कहते है कि वह पुरुष वह पुरुष धन्य है
जिसकी कीर्ति और प्रतिष्ठा इस संसार में है उसी तरह रह जाती है जिस प्रकार उसके
मुरझा जाने पर भी उसका सुगंध रह जाता है |
केइं न जगत जस बेंचा केइं न लीन्ह जस मोल |
जो यह पढे कहानी हम संवरे दुइ बोल ||
यह पंक्ति मलिक मुहम्मद
जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्द्मावत के अंश है जिसमे कवि कहते है कि इस संसार में यश ना तो किसी ने बेचा है और ना
ही किसी ने खरीदा है| कवि कहते हैं कि जो मेरे कलेजे के खून से रचित कहानी को
पढ़ेगा वह हमें दो शब्दों में याद रखेगा|
घरिया में डालकर कांच जब तपाया जाता है तभी उसमें छिपा सोना निकलता है ठीक इसी प्रकार इस संसार में मानव संघर्ष, कष्ट, तपस्या, त्याग से ही श्रेष्ठता प्राप्त कर पाता है अर्थात कुछ पाने के लिए पहले घरिया में तपना पड़ता है, गला पड़ता है|
Objective
Questions
Very informative poem
ReplyDeleteMast hai sir good poem
ReplyDeleteThank you so much sir
ReplyDeleteSuperb sir keep it up!!👍
ReplyDeleteThank u sir... For giving us right and informative information 👍🏻
ReplyDeleteSir Accha tha lekin next part Ka kaise likhe
ReplyDeleteAur Baki poem Ka bhi
I understood very easily. Thank sir
ReplyDeleteMust sir
ReplyDeleteSir plzz.provide pdf
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